• उत्तराखण्ड सरकार
  • Government of Uttarakhand

Minor Irrigation Department, Uttarakhand

लघु सिंचाई विभाग, उत्तराखंड

0135-2672006

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History

इतिहास

 वर्ष 1946 तक उत्तर प्रदेश राज्य में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कृषि विभाग का अनुभाग था। इसका मुख्यालय कानपुर था। संस्तुतियों के आधार पर वर्ष 1947 में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग अनुभाग कृषि विभाग से अलग करके एक स्वतन्त्र कृषि इंजीनियरिंग विभाग बना दिया गया। इसके प्रथम चीफ कृषि इंजीनियर श्री पी0 सी0 विश्वनाथन नियुक्त किये गये।

नवनिर्मित कृषि इंजीनियरिंग विभाग को शासन द्वारा कृषकों के कुओं /नलकूपों की बोरिंग करने, सिंचाई तथा खेती में काम आने वाले यन्त्रों का निर्माण तथा मरम्मत व ट्रैक्टर द्वारा कृषकों को खेती की जुताई आदि का कार्य सौंपा गया। सिंचाई सेवा के लिए प्रारम्भ में प्रदेश को कानपुर, वाराणसी एंव मेरठ तीन जोनों में बांटा गया। प्रत्येक जोन के लिए एक-एक कृषि इंजीनियर, जिसका पद अधिशासी अभियन्ता के समकक्ष था, नियुक्त किये गये। बाद में गोंडा और आगरा दो और जोन सृजित किये गये। इनकी सहायता के लिए निम्न अधिकारी एवं कर्मचारियों की व्यवस्था की गयी:

► सहायक अभियन्ता
► सीनियर मैकेनिकल इन्स्पेक्टर
► मैकेनिकल सुपरवाइजर
►बोरिंग मैकेनिक
►सहायक बोरिंग मैकेनिक
►मैकेनिक

स्वतन्त्र कृषि इंजीनियरिंग विभाग ‘‘अधिक अन्न उपजाओ‘‘ ‘‘(Grow More Food) ‘‘ योजना के कार्यान्वयन हेतु सृजित किये गये। वर्ष 1964 में लघु सिंचाई कार्यक्रम को चलाने हेतु एक स्वतन्त्र विभाग ‘‘लघु सिंचाई‘‘ शासन द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसका विभागाध्यक्ष अधीक्षण अभियन्ता था।

वर्ष 1965 में समस्त लघु सिंचाई कार्याें पर अनुदान दिये जाने की स्वकृति शासन द्वारा प्रदान की गयी थी, जो दिनांक 31.12.1967 तक उपलब्ध रही। दिसम्बर 1967 से केवल पक्के कुँओं पर ही अनुदान की सुविधा देय थी। धीरे-धीरे प्रत्येक जनपद में सहायक अभियन्ता के पद सृजित किये गये तथा मण्डलों में अधिशासी अभियन्ता के पद स्वीकृत किये गये।

उत्तराखंड राज्य सृजन के समय (नवम्बर 2000) उत्तराखंड राज्य में लघु सिंचाई का एक सुदृढ़ ढ़ांचा खड़ा हो चुका था, जिसमें एक अधीक्षण अभियन्ता (नोडल अधिकारी) के अधीन तीन अधिशासी अभियन्ता, 14 सहायक अभियन्ता, 125 अवर अभियन्ता, 53 बोरिंग टैक्नेशियन, 13 सहायक बोरिंग टैक्नेशियन कुल 335 पदों सहित विभाग अस्तित्व में था।

भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष कुल सृजित सिंचन क्षमता का लगभग एक तिहाई केवल लघु सिंचाई साधनों से सृजित किया जाता है। उत्तर प्रदेश में निजी साधनों से प्रति वर्ष 0.8 से 1.00 M.ha सिंचन क्षमता सृजित हो रही है, जो विश्व दर का 8-10 प्रतिशत है। इससे लघु सिंचाई कार्यक्रम के विकास का अनुमान लगाया जा सकता है।

उत्तराखंड राज्य में सृजित सिंचन क्षेत्रफल का 80 प्रतिशत भाग लघु सिंचाई संसाधनों जैसे गूल, हौज, हाइड्रम, बोरिंग पम्पसेट, भू-स्तरीय पम्पसेट, आर्टीजन, विद्युत पम्पसेट, कुआँ, राजकीय /व्यक्तिगत नलकूप, डाईवर्जन एवं वियर आदि से सिंचित है। भविष्य में भी यहां बड़ी सिंचाई योजनाओं की सम्भावना नगण्य है। जबकि लघु सिंचाई योजनाओं की राज्य में प्रचुर सम्भावना व मांग है। विभाग की उपयोगिता देखते हुए उत्तराखंड शासन द्वारा लघु सिंचाई विभाग का ढ़ांचा सुदृढ़ किया गया है। वर्तमान में विभाग में मुख्य अभियन्ता स्तर-2 के अधीन 4 अधीक्षण अभियन्ता, 14 अधिशासी अभियन्ता, 38 सहायक अभियन्ता तथा 145 कनिष्ठ अभियन्ता/ अपर सहायक अभियन्ता सहित 539 पद स्वीकृत किये गये हैं।