• उत्तराखण्ड सरकार
  • Government of Uttarakhand

Minor Irrigation Department, Uttarakhand

लघु सिंचाई विभाग, उत्तराखंड

0135-2672006

staffo-mirri-uk[at]gov.in

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Shri H.C Semwal (I.A.S)
Secretary Minor Irrigation Department

सिंचाई की अवधारणा

आदिकाल में मानव सभ्यता के प्रथम चरण में कृषि पूर्णतया वर्षा पर निर्भर थी। कालान्तर में कृषि की सफलता के लिए सिंचाई की आवश्यकता प्रतीत हुई, इस प्रकार मानव सभ्यता के विकास के साथ सिंचाई के विकास का इतिहास भी सम्बद्ध है। हवा के साथ-साथ पानी भी जीवन के लिए आवश्यक तत्व है। समस्त प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदी (पानी) तटों पर ही हुआ है। आदिकाल सभ्यता के देश में भारत तथा मिश्र में सिंचाई का ज्ञान समुन्नत रहा है। पृथ्वी के सतह के लगभग तीन चैथाई भाग में फसल के उत्पादन के लिए समुचित प्राकृतिक जल उपलब्ध नहीं है। उसके लिए सिंचाई सुविधाएं आवश्यक है। समस्त विश्व में विशेष तया उष्ण कटिबन्धीय तथा शुष्क देशों में, सभी देश अपने प्राकृतिक साधनों का सिंचाई के लिए उपयोग करने में प्रयत्नशील हैं और विश्व के सिंचित क्षेत्र में निरन्तर वृद्धि हो रही है। भारत आदिकाल से कृषिही प्रधान देश रहा है। यहां 75 प्रतिशत जनता खेती पर ही जीवन यापन करती है। मानसून की अवधि तथा वर्षा की मात्रा अनियमित होने के कारण कृषि को विपदाओं का सामना करना पड़ता है।

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Shri Brijesh Kumar Tiwari

Cheif Engineer & HOD Minor Irrigation Department

फलस्वरूप कृषि की वृद्धि बनाए रखने के लिए कृत्रिम जल प्रदाय साधनों द्वारा सिंचाई करने का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। सिंचाई के महत्व के प्रति विकासशील देशों का ध्यान तीव्रता से आकर्षित हो रहा है, क्योंकि अधिकतम कृषि उत्पादन के लिए प्राकृतिक जल उचित समय पर उचित मात्रा में न प्राप्त होने पर कृत्रिम सिंचाई पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए सिंचाई के साधन और सिंचित क्षेत्र का शीघ्रता से विकास अत्यन्त आवश्यक है। सिंचाई समस्याओं का समाधान और सिंचाई योजनाओं को अधिकाधिक उपयोगी और लाभप्रद बनाने का उपक्रम आवश्यक है और इस दिशा में अनेकानेक प्रयोग एवं शोध किये जा रहे हैं। विकास की योजनाओं में इन्हें प्राथमिकता दी जा रही है। हमारे देश के वैज्ञानिक और कुशल अभियन्ता इस क्षेत्र में प्रयत्नशील हैं भारत में आदिकाल से ही कृषि की उपयोगिता के कारण वेदों, पुराणों और स्मृतियों ने सिंचाई की महिमा का वर्णन किया है। अथर्व वेद में सिंचाई की नहर और नदी के सम्बन्ध की तुलना बछड़े और गाय के सम्बन्ध से की गयी है। मनु स्मृतियों में नहरों के निर्माण के द्वारा निर्धन वर्ग की सहायता करना धनाढ़य पुरूषों का कर्तव्य माना गया है। राजा भगीरथ को नदी नियंत्रण और सिंचाई कार्यों के निर्माण करने वाला महान अभियन्ता माना जा सकता है। सिंचाई के कार्य को एक पुनीत कर्म मानकर प्राचीन समय से भारत में सिंचाई के साधनों का निर्माण हो रहा है। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में भी सिंचाई के विषय का समुचित वर्णन किया है। दक्षिण भारत में चोल राजाओं ने सिंचाई सुविधाओं के विस्तार में अत्यधिक उत्साह प्रदर्शित किया था। चैदहवीं शताब्दी में मुस्लिम शासक फिरोजशाह तुगलक ने यमुना तथा सतलज नदियों से नहरें निर्मित की जिसका बाद में सोलहवीं शताब्दी में अकबर ने जीर्णाेंद्धार किया। शाहजहाँ ने अकबर की परम्परा को आगे बढ़ाकर नहरों के निर्माण में रूचि ली। उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश काल में यमुना से पूर्वी तथा पश्चिमी यमुना नहरें और कावेरी से कावेरी डेल्टा नहरें बनी, बाद में गंगा से अपर तथा लोअर गंगानहर तथा गोदावरी डेल्टा आदि प्रमुख नहरों का निर्माण हुआ।